मामू बनाओ महोत्सव (हास्य-व्यंग्य) ( विनोद कुमार विक्की )

public/banner-image/2024-02-29-05-38-53.jpeg

अप्रैल का प्रथम दिवस मनाने की बजाय बनाने का होता है। तो इसी संदर्भ में धृतराष्ट्र चैनल पर पेश है विशेष कार्यक्रम के तहत कैमरा मैन गांधारी के साथ मूर्खेंकर विनोद विक्की की स्पेशल रिपोर्ट "अप्रैल फूल मामू बनाओ महोत्सव"। नंगी आंखों से ब्रह्माण्ड के एक ऐसा गोला का दर्शन करवा रहे हैं जहाँ हर कोई एक दूसरे को बनाने के लिए आतुर है। वोट के लिए नेता जनता को बना रहा है।महंगाई और बेरोज़गारी वाले एनेशथेशिया का टीका लेकर बुद्धिजीवी जनता मोबाइल पर रील्स और मीम्स बना रहा है। बाबा भक्तों का अकाउंट बढ़ाने के चक्कर में अपनी प्रापर्टी बना रहा हैं। आपको बता दें आर्यावर्त के भूखंड पर फूल बनने और बनाने की परंपरागत महोत्सव सिर्फ अप्रैल के प्रथम दिन ही नही अपितु किसी भी सीजन,किसी भी समय और किसी भी अवसर पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में बनने वाले को मामू/गधा/फूल/अप्रैल फूल की संज्ञा दी गई है तो बनाने वाला स्याना/शाना/डेढ़ शाना के नाम से जाना जाता है। इस भूखंड पर फूल बनने और बनाने वाले ऐसे जीव आपको गांव की गलियों से लेकर शहर के चौक-चौराहों तक हर जगह 24×7 बहुतायत मात्रा में उपलब्ध है।इनका मार्गदर्शक मीडिया पेशेवर हीरो-हीरोईन, उद्योगपति, सेलिब्रिटी आदि की मौत अथवा विवाह-ब्रेकअप जैसी खबरें एकाध सप्ताह तक टीवी पर फ़्लैश कर करेंट अफेयर्स बनाए रखता है तो देश के लिए शहीद सिपाहियों की शहादत चर्चा चंद मिनटों के न्यूज़ में कवर कर इतिहास बना देते है। इस भूखंड पर बहुतायत मात्रा में रेडिमेड उपलब्ध मामू अथवा द्विपाद गधों का मैन्यूफैक्चर नहीं होता बल्कि इन गधों की सर्विसिंग होती है। अर्थात मंहगाई,बेरोजगारी भ्रष्टाचार के लोकतंत्र जनित रोग से पीड़ित बैशाखनंदनों का यहाँ ट्रीटमेंट किया जाता है।भले ही इलाज करने वाला कोई खद्दरधारी हो या भगवाधारी या लंबी लंबी दाढ़ी वाला विशेष धर्माधिकारी । अब आप सोचेंगे कि सर्विस सेंटर में तो निर्जीव मैकेनिकल आइटम का रिपेयरिंग होता है फिर गधों का कैसे!यहाँ के गधे मोटरगाड़ी या इलेक्ट्रॉनिक गुड्स से कम नहीं है क्योंकि धक्का देने पर ही इन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है। इनका रिमोट इनके कुछेक आलाकमान हुक्मरानों के हाथ में ही होता है। यहाँ अलग-अलग प्रकार के सर्विस सेंटर है यथा अच्छे दिन सर्विस से

public/banner-image/2024-02-29-05-38-53.jpeg

टर,लोकपाल लाओ सर्विस सेंटर,बाबाजी का सर्विस सेंटर, बहत्तर हूर प्राप्ति केंद्र आदि। किन्हीं का सर्विस सेंटर विकास के हाॅलमार्क पर चल रहा है तो कोई अपने सर्विस सेंटर को सबसे पुरानी व विश्वसनीय प्रतिष्ठान बताकर चला रहा है।कुछ लंबी दाढ़ी वाले अपने धर्म को खतरे में बताकर अपनी सर्विस सेंटर में गधों का रिपेयरिंग कर रहे है।अलग-अलग प्रकार के गधे तो अलग-अलग प्रकार का सर्विस सेंटर। ऐसे सर्विस सेंटर गधों का दंडरहित साम-दाम-भेद द्वारा मानसिक शुद्धिकरण करते हैं और फिर अपने सर्विस सेंटर का लोगो/हालमार्क लगा कर अपने अनुसार इन्हें जोतते है। सर्विस सेंटर वालों को ज्यादा मशक्कत भी नहीं करना पड़ता क्योंकि एक सर्विस सेंटर से असंतुष्ट कस्टमर को दुसरा सर्विस सेंटर वाला लपकने को तैयार बैठा है। कहने को तो इस भूखंड पर शासन की लोकप्रिय पद्धति लोकतंत्रात्मक है लेकिन अब्राहम लिंकन के "लोकतंत्र जनता का जनता के लिए जनता द्वारा" सिद्धांतों वाला नहीं अपितु शेक्सपियर के कथन "प्रजातंत्र मूर्खो का शासन "वाला। यहाँ के विवेक शील प्राणियों के सद्कृत्य व कारनामें ऐसे-ऐसे होते है कि प्राकृतिक गधे भी शरमा जाए। गधा से याद आया गधों का भी अपना कुछ मैनिफेस्टो व सिद्धांत होता है। लेकिन इस भूखंड पर निवास करने वाले द्विपाद बैशाखनंदनों का कोई मोरल या सिद्धांत ही नही है।कोई भी खादी धारण करने वाला विशेष प्रकार का जीव "कम बोझ और ज्यादा मौज" का लॉलीपॉप दिखला दे तो ये पाँच वर्षों के लिए उनको अपना मालिक या माई-बाप बना लेते है।और फिर मंहगाई,गरीबी,बेरोजगारी का अतिरिक्त बोझा लेकर पाँच वर्षो तक उसी मालिक के खिलाफ ढेंचू-ढेंचू करते रहते है। 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं' अब सारा दोष मालिक को तो दे नहीं सकते जिम्मेदार तो स्वयं ये विवेकशील जीव ही है जो इन्हें अपना मालिक चुनते है,जय जयकार करते है और संपूर्ण सृष्टि में सर्वोतम मालिक पाने का सौभाग्य समझ अपने आप में आह्लादित होता रहता है। यहाँ के द्विपाद बैशाखनंदन मुफ्त डाटा व आटा के प्रलोभन में या अच्छे दिन व विकास की आस में प्रायः अपने गर्दभाध्यक्ष का चुनाव करते है।फिर पाँच सालों तक गर्दभ राज मंहगाई व बेरोजगारी के बोझ लदे गधों को विकास नामक अदृश्य डिजिटल लाठी से हांकता रहता है।इन बुद्धिजीवियों को गर्दभ

public/banner-image/2024-02-29-05-38-53.jpeg

ाज समझाते है कि मुद्दा गरीबी या बेरोजगारी नहीं अपितुधर्म,संप्रदाय,क्षेत्रीयता व जातीयता है।गधे भी गर्दभराज को देवदूत समझते है और भिड़े रहते है जाति-धर्म के विकास में। संपूर्ण चराचर में यह इकलौता भूखंड है जहाँ वैरागी भी भौतिक सुख का उपभोग करने से तनिक नहीं हिचकिचाते।इस भूखंड पर बाबाजी/मौलाना शासन करते हैं या फिर शोषण। साधु सीएम,एमपी, एमएलए बनकर तथाकथित विवेकशील जंतुओं पर शासन करते है या गुफा,मठ,विश्वविद्यालय आदि बनाकर शोषण करते है।सबसे मजे की बात यह है कि ये डिजिटल बैशाखनंदन कठमुल्लों के बहकावे या 72 हूर के चक्कर में अथवा किसी भी भगवा चोला पहने पाखंडी गर्दभबाबा के लिए बिना सोचे समझे मरने और मारने को हमेशा तत्पर रहते है। बहरहाल हमारा देश संपूर्ण चराचर में इकलौता गोला है, जहां अप्रैल फूल हर सीजन में सोद्देश्य मनाया जाता है।तो चलिए अप्रैल फूल की हार्दिक शुभकामनाओं सहित इस परंपरा को आगे बढ़ाया जाए और किसी मासूम को मामू बनाया जाए। =========== विनोद कुमार विक्की, महेशखूंट बाजार खगड़िया बिहार 851213

public/banner-image/2024-02-29-05-38-53.jpeg

Latest News

Tranding

© समय प्रसंग. All Rights Reserved. Designed by Networld
No. of Visitors from 28-08-2023

Web Analytics