फिल्मी भूतों का भविष्य (हास्य-व्यंग्य) (विनोद कुमार विक्की)

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नमस्कार। आज के प्रसंग में फिल्मी भूतों की तीन पीढ़ियों के बदलते स्वरूप और उनके भविष्य पर चर्चा करूंगा।जी हां बिल्कुल सही पढ़ा आपने।भूत जिनका नाम सुनकर ही शरीर वाइब्रेशन मोड में चला जाता है। चलिए बिना वक्त और शब्द गंवाए चर्चा शुरू करता हूं। प्रथम पीढ़ी के भूतिया समुदाय में नब्बे के दशक के रामसे ब्रदर्स का दहशतगर्द भूत आता है। इनका निवास स्थान आबादी से दूर पुरानी हवेली, पुराना मंदिर, वीराना खंडहर,डाक बंगला आदि होता था किन्तु इनका खौफ साम्रज्य हवेली अथवा मंदिर सहित पूरे गांव या क्षेत्र की सीमा तक होता था।नर और मादा दोनों ही जेंडर के भूत बिगड़े शक्ल वाले काफी भद्दे दिखाई देते थे। यूं तो मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य रहकर ये अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए डराने का कार्य करते थे तथापि जला हुआ चेहरा, खुरपी जैसी बाहर निकली हुई दांत, बिखरे हुए बाल,लंबे नाख़ून के साथ सफेद साड़ी या सफेद वस्त्र में डरावनी काया लेकर यदा-कदा प्रकट भी हो जाते थे। कभी-कभी इनके सिर पर सिंग भी नजर आ जाता था। चर्र... की डरावनी आवाज के साथ दरवाजा खुलने के बाद ही इनकी एंट्री होती थी।ये भूत काफी आराम पसंद होते थे। आर्म चेयर अथवा झूला पर बैठ कर आराम फरमाते अथवा अदृश्य अवस्था में झूला या कुर्सी हिलाकर लोगों के दिमाग की तंतुओं में सिहरन पैदा करते थे। रामसे ब्रदर्स युग के नर भूत काफी शौकीन मिजाज होते थे। रात में नहाती हुई स्त्रियों के बाथरूम में इनका प्रवेश होता था अथवा रात्रि बेला में ताबूत या तहखाना से बाहर आकर स्त्रियों की खोज में निकल जाते थे।रामसे के नर और मादा दोनों ही प्रकार के भूतों का लंग्स स्टैमिना हास्य शिरोमणि अर्चना पूरन सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू से भी ज्यादा पावरफुल था। हंसोड़ प्रवृत्ति के ये भूत बिना चुटकुला सुने ही हर हमेशा ठहाका मारकर हंसते रहते थे।इनके अट्टहास को सुनकर सामने वाले की रुलाई छूट जाती थी। अब जरा सकेंड जेनरेशन के भूत पर गौर फ़रमाया जाय। दूसरी पीढ़ी में राम गोपाल वर्मा के युग का भूत आता है। डरना मना है तथा डरना जरुरी है आदि आदर्श वाक्य के उद्घोषक इक्कीसवीं सदी के पुरुष भूत काफी डैशिंग, हैंडसम और स्मार्ट तथा मादा भूत ग्लैमरस और हाट हुआ करते थे।ये अत्याधुनिक सुविधाओं से संपन्न शहरों, राष्ट्रीय राजमार्ग अथव

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ा फार्म हाउस या फिर अपार्टमेंट में सामान्य मानव की तरह निवास करते थे।ये मुंह से बिना हु...हा...की आवाज किए अथवा फेफड़ा फाड़ अट्टहास किए बिना ही अपने खौफिया कारनामे को अंजाम दे देते थे। रामू युग के वेल सिविलाइज्ड भूतों का ट्रेंड इतना परवान चढ़ा कि खुबसूरत एक्ट्रेस से लेकर सदी के महानायक तक ने भूत बनने का सौभाग्य और परम सुख प्राप्त किया। और फिर वक्त आया तीसरी पीढ़ी के आधुनिक 5जी युग के फोन भूत, भेड़िया,रुही, स्त्री आदि सहित साउथ की फिल्मी भूतों का। सोवर नेचर के ये भूत डरावने कम कॉमेडियन ज्यादा होते हैं।इनका सेंस ऑफ ह्यूमर गज़ब का होता है।यह फ्रेंडली और फनी टाइप के होते हैं। फिल्म के अन्य किरदार इनसे डरने की बजाय इन्हीं को डराने में लगे रहते हैं। समय के साथ इनके उद्देश्य में भी बदलाव आया है।अब यह डराते कम डरते ज्यादा है। संभवतः 5जी युग के भूत काफी स्ट्रैस फुल रहते हैं। ठहाका मारकर हंसने की बजाय इनकी सिसकारियां ही चलचित्र के दौरान सुनाई देती है।समय के साथ भूतों का साम्राज्य भी सिमट कर किसी घर अथवा कमरा विशेष तक रह गया है।अकेलेपन से ग्रस्त आधुनिक भूतों पर हंसाने मेरा मतलब डराने का वर्कलोड काफी बढ़ता जा रहा है। इनके निवास स्थान पर साथ रहने वाला लालटेन व लट्ठधारी, कम्बल से आधा चेहरा ढ़के, भूतिया भवन की चौकीदारी करने वाले वीभत्स थोबड़ा व पत्थर की आंख वाले काका टाईप डरावने गार्ड या चौकीदार की प्रजाति लुप्त सी हो गई है। उद्देश्य से भटक रहे आधुनिक भूतों की उपयोगिता डराने या मारने की बजाय मनोरंजन मात्र रह गया है। भूतों का अस्तित्व कायम रहे, आवश्यक है कि अंधविश्वास उत्थान समिति इस संदर्भ में ठोस कदम उठाते हुए "सेव घोस्ट,रिस्पेक्ट घोस्ट"जैसी योजना लाने के लिए आंदोलन करें।अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब चीता की तरह ही भूतों को भी विदेशों से लाने वाली स्थिति उत्पन्न हो जाए।==============© विनोद कुमार विक्की

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